चाईल्ड पोर्नोग्राफी


*सम्पन्नता और प्रौधोगिकी की जमीन पर  खड़ी पाशविकता की फसल*
* भारत में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की त्रासदी*
(डॉ अजय खेमरिया)   
                  
*तथ्य एक :भारत में प्रति 8 मिनिट में एक बच्चा अपने अभिभावकों से गायब हो जाता है।
*तथ्य दो:भारत में प्रति दस मिनिट एक चाइल्ड पोर्न फिल्म इंटरनेट पर अपलोड की जा रही है।
* तथ्य तीन:भारत में दिल्ली की प्रतिव्यक्ति आय देश के औसत से तीन गुना ज्यादा है। दिल्ली ही वह जगह है जहां से सबसे ज्यादा चाइल्ड पोर्न फिल्में इंटरनेट को सुपुर्द की जा रही है।
* तथ्य चार:राज्यसभा में  आईआईटियन सांसद जयराम रमेश की अध्यक्षता में एक तदर्थ कमेटी ने 25 जनवरी को रिपोर्ट सौंपी है जिसमें प्रधानमंत्री से चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर वैश्विक गठबंधन बनाने के लिये कहा गया है।
ये चार तथ्य भारत में उस मौजूदा सच्चाई को बयां करते है कि सम्पन्नता और तकनीकी उन्नति  हमारी सामूहिक चेतना को कैसे पशुता के धरातल की ओर धकेल रही है।दिल्ली ही नही मुंबई, अहमदाबाद, बेंगलुरु,हैदराबाद जैसे शहर भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी के हब बने हुए है।अमेरिकन संस्था एनसीएमइसी ने हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय को जो डाटा उपलब्ध कराया है वह भारत के सम्पन्न शहरी जीवन पर हावी होती पाशविकता को प्रमाणित कर रहा है।मुंबई औऱ दिल्ली पुलिस ने इस इनपुट के आधार पर कई एफआईआर दर्ज कर चाइल्ड पोर्नोग्राफी में शामिल अपराधियों को पकड़ने की मुहिम शुरू की है। खास बात यह है कि हर दस मिनिट में बच्चों से जुड़ी पोर्न वीडियो अपलोड करने वाले कोई सामान्य लोग नही है बल्कि ये सूचना प्रौद्योगिकी के मास्टर माइंड्स है। ये एक्सपर्ट देहाती स्कूलों से निकल कर नही आए है बल्कि आधुनिक प्रौधोगिकी से सम्पन्न है।यानी मानसिक रुग्णता की की जकड़ में भारत का सम्पन्न और सुशिक्षित वर्ग ही सर्वाधिक है।दिल्ली के नजदीक निठारी की कलंकित कथा के खलनायक भी आर्थिक रूप से बेहद मजबूत थे।मुंबई पुलिस ने जो 1700 प्रकरण जांच में लिए है वे सभी ऐसे वर्गों का खुलासा कर रहे है जो भारत में अभिजन या कुलीन श्रेणी में माने जाते है।समझा जा सकता है कि हर आठ मिनिट में गायब हो रहा बालक किन हाथों में किस प्रयोजन से जा रहा है।1948 में बनी अमेरिकी   संस्था एनसीईएमईसी  ने भारत सरकार को जो डाटा साझा किया है वह मौजूदा पांच महीने का ही है।इससे पहले एक वैश्विक रपट भारत को दुनिया के सर्वाधिक पोर्न प्रेमी लोगों के मेडल से नवाज चुकी है।सवाल यह है कि नग्नता का यह अतिशय अबलंबन भारत के किस सामाजिक चरित्र को गढ़ रहा है?सयंमित यौन जीवन की हामी भारतीय जीवन पद्धति इस हद तक यौनचार में आवर्त होती जा रही है कि भारत के मासूम बच्चों  तक को बख़्शने राजी नही है।दिल्ली,मुंबई,चैन्नई,अहमदाबाद, बेंगलुरु, भोपाल,जयपुर,देहरादून, कोलकोता जैसे शहरों से गायब होने वाले बच्चों में 60 फीसदी संख्या बेटियों की होती है।2011 से 2017 तक के सरकारी आंकड़े बताते है कि गायब हुए बच्चों में से वापिस आने वालों की तादात 50 फीसदी ही बमुश्किल है।
पिछले दिनों लोकसभा में प्रस्तुत सरकार के आंकड़े बताते है कि वर्ष 2016 और 2015 में कुल 111569 बच्चे घरों से पुलिस रिकार्ड में  गुम हुए।इनमें से 55944 को ही खोजा जा सका है।मप्र ,बिहार,बंगाल,दिल्ली,उड़ीसा ऐसे राज्य है जहां गुमशदूगी का आंकड़ा सर्वाधिक है।सरकार के ही आंकड़े बताते है कि  साल 20515-16 की अवधि में मप्र की 6037 बंगाल की 5986,दिल्ली की 3982,बिहार की 3730महाराष्ट्र की 3169 बालिकाओं का कोई पता नही लग सका है।असल में यह सरकारी आंकड़े भी बहुत विश्वसनीय नही है क्योंकि पिछले साल महिला बाल विकास विभाग ने जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मदन बी लोकुर की पीठ के समक्ष दाखिल किया उसमें बताया गया कि देश भर के बाल सरंक्षण संस्थानों में 2.61लाख बच्चे रह रहे है। वहीं 2016-17 में विभाग ने जो जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी उसमें यह संख्या 4.73 लाख थी।सुप्रीम कोर्ट ने दो लाख से ज्यादा बच्चों को गुमशुदगी की श्रेणी में मानने को लेकर केंद्र सरकार से जबाब मांगा था। वहीं केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई रत्ना जैना कमेटी ने ऐसे बच्चों की संख्या 3 लाख से ऊपर बताई है जो बाल सरंक्षण केंद्रों में रह रहे है।जाहिर है भारत में आज भी गायब हुए बच्चों को लेकर कोई एकीकृत सूचना तंत्र उपलब्ध नही है।यह स्थिति तब है जब 30000 करोड के बजट से ज  एकीकृत बाल सरंक्षण /विकास योजना देश मे चलाई जा रही है।
मूल प्रश्न हमारे समाज में बाल यौन शोषण की विकसित हो चुकी मानसिकता का है।क्या भारतीय समाज जो कभी पश्चिमी जीवन को मुक्त यौनचार के लिये हिकारत की नजर से देखता था आज खुद पूरी तरह से यौन पाशविकता का अनुशीलन कर रहा है?
हमारी संवेदना मासूमियत के स्तर को भी भेद करना भूल रही है।यह सवाल इसलिये भी ज्वलंत है क्योंकि इस पाशविक मनोविज्ञान के उर्वरा भूमि गैर पढ़े लिखे या गरीब लोग नही है बल्कि सभ्य,सम्पन्न और स्मार्ट जीवन के धनी नए भारतीय लोग है।पिछले पांच महीने में जो चाइल्ड पोर्न वीडियो अपलोड किए गए है वे उस सम्पन्नता को भी कटघरे में खड़ा करते है जिसके दम पर भारत वैश्विक आर्थिकी में खड़ा होने का दावा करता है।राज्यसभा की  15 सदस्यीय तदर्थ कमेटी ने 25 जनवरी को जो 40 सिफारिश की है उसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी को भारत के लिए बड़ा संकट बताया गया है।इस समिति ने प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है कि वे इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय सौर महागठबंधन की तर्ज पर कोई वैश्विक संगठन के लिए पहल करें।समझा जा सकता है कि यह चुनौती कितनी भयाभय है। इंटरनेट  के मूलाधिकार की न्यायिक अवधारणा के बीच राज्यसभा समिति ने फेसबुक,ट्विटर,लिंक्डइन, नेटफिलिक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को विनियमित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।समिति ने भारत में सभी लोक संचार उपकरणों में ऐसे अनिवार्य एप इंस्टाल करने की सिफारिश की है जिससे अभिभावकों को अश्लील कंटेंट पर निगरानी रखना सरल हो सके।
बहरहाल अमेरिकन संस्था एनसीएमईसी के डाटा और जयराम रमेश समिति की सिफारिशों पर सरकार गंभीर दिखाई दे रही है।केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को इस मामले में एक्शन लेने के लिए कहा है।इसके बाबजूद भारत मे बाल यौन शोषण की त्रासदी बहुत ही चिंता का सबब है क्योंकि पूरी दुनियां में सर्वाधिक सरंक्षण और जरूरतमंद बच्चों की संख्या हमारे ही देश मे है।


   

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